चिराग पासवान की आरा रैली: बिहार चुनाव में नया मोड़? : chirag paswan ara rally new twist in bihar politics assembly election tejashwi yadav praises prashant kishor

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पटना. चिराग पासवान की आरा रैली क्या बिहार की सियासत में एक टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती है? क्या उनकी रणनीति तेजस्वी यादव (36.9% लोकप्रियता) और प्रशांत किशोर (16.4% लोकप्रियता) के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत करने की है? क्या तेजस्वी के मजबूत मुस्लिम-यादव (एम-वाई) वोट बैंक को कमजोर करने के लिए चिराग गैर-यादव पिछड़े और दलित वोटरों पर फोकस कर रहे हैं? लेकिन चिराग इस रैली में जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव पर सधे हुए अंदाज में हमला किया, जिसके अब मायने तलाशे जा रहे हैं. चिराग का 243 सीटों पर चुनाव लड़ने और एनडीए को जिताने वाली बात के भी मायने निकाले जा रहे हैं. क्या चिराग पासवान की आरा रैली बिहार चुनाव की तस्वीर बदल देगी?

बिहार की सियासत हमेशा से जातीय समीकरणों और गठबंधन के खेल के साथ-साथ नेताओं की बयानबाज़ी से प्रभावित रही है. चिराग ने आरा रैली में ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के नारे को दोहराते हुए तेजस्वी यादव पर सधे हुए अंदाज में निशाना साधा. उन्होंने तेजस्वी के नेतृत्व को ‘वंशवादी राजनीति’ का प्रतीक बताया और कहा कि बिहार के युवा अब ऐसी राजनीति को नकार रहे हैं. चिराग ने तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव और कांग्रेस के शासनकाल में कथित ‘जंगलराज’ की वापसी का डर दिखाया. विशेष रूप से पिछले लोकसभा चुनाव में जमुई रैली में उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियों का जिक्र करते हुए. उन्होंने कहा कि तेजस्वी की चुप्पी उनकी ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ को दर्शाती है, जिससे युवा मतदाताओं का भरोसा टूट रहा है.

चिराग का ‘नया पॉलिटिक्स’

जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर पर चिराग का रुख नरम लेकिन रणनीतिक था. उन्होंने प्रशांत की जन सुराज पार्टी को ‘नया प्रयोग’ बताया, लेकिन यह भी कहा कि बिहार की जनता उनके जैसे ‘बाहरी खिलाड़ियों’ पर भरोसा करने से पहले उनके काम को परखेगी. चिराग ने प्रशांत की बिहार में बदलाव की बात को सराहा, लेकिन उनकी लोकप्रियता को परखने के लिए 2025 के चुनाव को निर्णायक बताया. यह बयान चिराग की रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वे प्रशांत को गंभीर प्रतिद्वंद्वी मानते हुए भी उनके प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं. प्रशांत किशोर के प्रति चिराग का नरम रुख उनकी रणनीति का एक और पहलू है. लेकिन उनकी तारीफ यह भी दर्शाती है कि वे भविष्य में उनके साथ तालमेल की संभावना को खुला रखना चाहते हैं. आइए चिराग के आरा रैली की 10 बड़ी बातें और उनके राजनीतिक मायने.
1. तेजस्वी यादव पर अपेक्षाकृत नरमी
चिराग पासवान ने इस बार तेजस्वी यादव पर तीखे हमलों से परहेज किया. उन्होंने कहा कि तेजस्वी ‘दिन में सपना देख रहे हैं’, लेकिन किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत आलोचना से बचे. यह चिराग की बदली हुई रणनीति का संकेत हो सकता है, जो विपक्षी वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश भी हो सकती है.

2. प्रशांत किशोर की तारीफ
जन सुराज अभियान चला रहे प्रशांत किशोर के प्रति चिराग का रुख चौंकाने वाला रहा. उन्होंने खुले मंच से कहा कि किशोर ‘नई राजनीति’ कर रहे हैं. इससे संकेत मिलता है कि चिराग ‘पीके’ को विपक्षी की बजाय संभावित सहयोगी के तौर पर देख रहे हैं या कम से कम उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा नहीं मानते.

3. नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चेहरा बताना
भले ही चिराग ने कभी नीतीश कुमार को ‘भ्रष्टाचार का प्रतीक’ बताया हो, इस रैली में उन्होंने उन्हें एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया. यह यू-टर्न चिराग की राजनीतिक परिपक्वता और अवसरवाद दोनों को दर्शाता है.

4. NDA की 225+ सीटों की भविष्यवाणी
चिराग ने जोर देकर कहा कि एनडीए 225 से अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाएगा. यह आत्मविश्वास न केवल उनके गठबंधन के प्रति वफादारी दिखाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वह अपनी पार्टी को “किंगमेकर” से “किंग” के रूप में देखना चाहते हैं.

5. जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश
चिराग ने ताड़ी (देशी पेय) पर तेजस्वी के रुख का समर्थन किया. यह कदम दलित और पिछड़े वर्गों के पारंपरिक व्यवसाय से जुड़ी भावनाओं को समझने और भुनाने का संकेत है.

6. पीके और तेजस्वी दोनों के लिए ‘स्पेस’ रखना
तेजस्वी पर नरमी और पीके की प्रशंसा, दोनों एक ही रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं. एनडीए में होने के बावजूद चिराग अपने लिए विपक्षी खेमे में भी ‘स्पेस’ बनाए रखना चाहते हैं.

7. युवा नेतृत्व का दावा
रैली में चिराग ने बार-बार युवाओं के मुद्दों की बात की, जिससे उन्होंने खुद को एक युवा, ऊर्जावान और भविष्य का नेता बताने की कोशिश की.

8. सॉफ्ट हिंदुत्व की झलक
रैली में जय श्रीराम के नारों की गूंज और सांस्कृतिक प्रतीकों का इस्तेमाल भी हुआ. इससे संकेत मिलता है कि चिराग अपनी राजनीति में ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का रंग भरने की कोशिश कर रहे हैं.

9. लोक जनशक्ति पार्टी की मजबूती का दावा
चिराग ने अपनी पार्टी को बिहार की ‘तीसरी सबसे बड़ी ताकत’ बताया. यह बयान उन्हें एनडीए में केवल सहयोगी नहीं, बल्कि जरूरी ताकत दिखाने की कोशिश है. सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा से चिराग दलित नेता से सभी वर्गों के नेता के रूप में उभरना चाहते हैं.

10. चुनावी शंखनाद
चिराग ने शाहाबाद, जो कभी एनडीए का गढ़ था और अब महागठबंधन का मजबूत आधार है, से अभियान शुरू किया. यह उनकी सियासी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.

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