दिल्ली में ‘ड्रैगन चाकू’ का कहर! स्टाइल मारते-मारते कत्ल कर डालते हैं छोरे, पुलिस के सामने आई नई मुसीबत

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दिल्ली: मई की एक सुबह, दिल्ली की गलियों में एक दिल दहला देने वाली वारदात ने पुलिस को चौंका दिया. कुछ नाबालिग लड़कों ने एक युवक को लूटपाट के प्रयास में ‘ड्रैगन चाकू’ से गोदकर मौत के घाट उतार दिया. यह कोई पहली घटना नहीं थी, कुछ महीने पहले 17 और 20 साल के दो युवकों को इसी तरह चाकू से हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था. बीते अक्टूबर में तीन किशोरों ने मिलकर एक 18 वर्षीय लड़के की जान ले ली, और हथियार वही था- ड्रैगन चाकू. लेकिन ये ड्रैगन चाकू आ कहां से रहे हैं? ये बड़ा सवाल बन गया है.

‘ड्रैगन चाकू’ देखने में आकर्षक लगते हैं- घुमावदार धार, हाथ से बनी डिजाइन और फैंसी कलर, लेकिन असल में ये किसी भी तेज धार वाले हथियार जितने ही खतरनाक हैं. कानून की दिक्कत यह है कि ये चाकू आर्म्स एक्ट के तहत तब तक गैरकानूनी नहीं माने जाते, जब तक इन्हें किसी अपराध में इस्तेमाल न किया जाए. यही वजह है कि ये तेजी से स्टाइल स्टेटमेंट से लेकर जानलेवा हथियार बनते जा रहे हैं.

पुलिस के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2025 की पहली तिमाही में Arms Act के तहत दर्ज मामलों की संख्या 1,049 तक पहुंच गई, जो कि 2024 में दर्ज 957 मामलों से लगभग 9.6% ज्यादा है. हालांकि, इस आंकड़े में उन ‘डिजाइनर चाकुओं’ की गिनती नहीं होती जो तकनीकी रूप से Arms Act के दायरे में नहीं आते. यही तकनीकी बारीकियां इन मामलों को और उलझा देती हैं.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं, ‘अगर किसी के पास ड्रैगन चाकू पाया जाता है, तो केवल इस आधार पर उसे Arms Act की धारा 25 के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसका अवैध इस्तेमाल न हुआ हो. अगर किया भी गया हो, तब भी कानून में चाकू की लंबाई, चौड़ाई और ऑपरेटिंग मैकेनिज्म को लेकर इतनी खास शर्तें हैं कि मामला टिकता नहीं.’ यह कानूनी कमजोरी अब अपराधियों के लिए वरदान और पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुकी है. चाकू अब सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि ‘स्टेटस सिंबल’ भी बन गया है. पुलिस के मुताबिक, ‘कई किशोर इसे सिर्फ लूटपाट या डराने के लिए नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर धौंस जमाने और अपने इलाके में दबदबा बनाने के लिए भी रखते हैं.’

इस प्रवृत्ति को हवा देने वाला दूसरा बड़ा कारण है इन चाकुओं की आसानी से उपलब्धता. दिल्ली के कई इलाकों में खुलेआम या चोरी-छिपे इनकी बिक्री हो रही है. ‘सरोजिनी नगर, करोल बाग, सदर बाजार, सीलमपुर और नबी करीम जैसे बाजारों में ये चाकू आसानी से मिल जाते हैं. झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों की हार्डवेयर दुकानों या स्थानीय लोहारों के पास ये सामान छुपाकर बेचा जा रहा है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी इसमें पीछे नहीं हैं. सर्च इंजन पर ‘ड्रैगन चाकू’ लिखते ही कई वेबसाइट्स सामने आ जाती हैं. ऑनलाइन विक्रेता चालाकी से इन्हें ‘किचन नाइफ’ या ‘यूटिलिटी टूल’ के रूप में दिखाते हैं ताकि किसी भी निगरानी से बच सकें.

कानून में दी गई सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, इन चाकुओं की डिजाइन भी खास तौर पर ऐसी बनाई जाती है कि ये प्रतिबंधित श्रेणी में न आएं. ‘ड्रैगन चाकू की धार इतनी सटीक तरीके से बनाई जाती है कि यह कानूनी लंबाई और चौड़ाई से थोड़ा कम रहती है. साथ ही, यह बटन या स्प्रिंग से नहीं खुलता, जिससे यह तकनीकी रूप से प्रतिबंधित नहीं होता. दिल्ली पुलिस ने अब इस समस्या से निपटने के लिए वैकल्पिक रास्ते अपनाने शुरू कर दिए हैं. चूंकि Arms Act के तहत कार्रवाई सीमित है, ऐसे मामलों में पुलिस अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS) की धारा 170 का सहारा ले रही है, जो किसी व्यक्ति को संगीन अपराध करने की आशंका पर गिरफ्तार करने की अनुमति देती है.

फिलहाल पुलिस एक ठोस रणनीति तैयार कर रही है, जिससे इन घातक चाकुओं की बिक्री और खरीद पर लगाम लगाई जा सके. लेकिन जब तक कानून में बदलाव नहीं होता, तब तक ये चाकू अपराधियों के हाथों में एक आसान और खतरनाक हथियार बने रहेंगे और कानून की आंख में धूल झोंकते हुए.

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