जब नवाब को चाहिए था कुछ हल्का, तब बना रामपुर का यखनी पुलाव, जानिए इस शाही ज़ायके की कहानी

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दस्तरखान की खास पेशकश में आज बात रामपुर की उस नवाबी रसोई की, जहां से यखनी पुलाव जैसे लाजवाब ज़ायके ने जन्म लिया. ये सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि तहज़ीब, परंपरा और स्वाद की वो कहानी है, जो आज भी हर मौके पर दिलों में…और पढ़ें

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जब नवाब को चाहिए था कुछ हल्का, तब बना रामपुर का यखनी पुलाव जानिए इसकी 

हाइलाइट्स

  • रामपुर का यखनी पुलाव नवाबी दौर से मशहूर है.
  • नवाब हामिद अली खान के कहने पर यखनी पुलाव बना.
  • रामपुर में यखनी पुलाव हर मौके पर पकाया जाता है.

अंजू प्रजापति/रामपुर. जब खाना सिर्फ भूख मिटाने का ज़रिया नहीं, बल्कि तहज़ीब और नज़ाकत की पहचान बन जाए, तो समझ लीजिए आप रामपुर की रसोई में हैं. लोकल 18 की खास सीरीज ‘दस्तरखान’ में आज बात हो रही है खास पकवान यखनी पुलाव की, जो नवाबी दौर से निकलकर आज भी रामपुर की पहचान बना हुआ है.

अंग्रेजी शासन के दौर में रामपुर देश की मशहूर रियासतों में से एक था. यहां के नवाब खाने-पीने के बेहद शौकीन माने जाते थे. खासबाग जैसे महलों में सिर्फ चावल पकाने के लिए एक अलग किचन हुआ करता था. नवाब हामिद अली खान के दौर में रामपुर की रसोई में करीब 150 खानसामे (शाही बावर्ची) हुआ करते थे, जिनमें हर एक को अपने-अपने खास व्यंजन में महारत हासिल थी.

कुछ इस अंदाज में हुई थी शुरुआत
एक दिन की बात है जब नवाब हामिद अली खान ने रसोई के सबसे भरोसेमंद खानसामे को बुलाकर कहा,


“मियां, कुछ नया बनाइए, कुछ ऐसा जो हल्का भी हो और ज़ायकेदार भी. बस यहीं से जन्म हुआ यखनी पुलाव का.

ऐसे किया जाता है तैयार
खानसामे ने मटन की हड्डियों को अदरक, लहसुन, धनिया, सौंफ और कई साबुत मसालों के साथ उबालकर एक सुगंधित यखनी तैयार की. फिर उसी यखनी में चावल डाले गए. घी का तड़का, रामपुर की खास पीली मिर्च और पकाने का नवाबी अंदाज़—इन सबने मिलकर इस डिश को लाजवाब बना दिया.

 शादी-ब्याह से लेकर जनाज़ों तक
रामपुर वालों के लिए ये सिर्फ पुलाव नहीं, बल्कि तहज़ीब की एक खास निशानी है. यहां अगर आप किसी से बिरयानी मांगेंगे, तो वो बिना झिझक आपको यखनी पुलाव परोस देंगे और मुस्कराते हुए कहेंगे,

“हमें बिरयानी बनाने का कोई और तरीका नहीं आता है”. इस डिश की खास बात ये भी है कि रामपुर में आज भी इसे शादी-ब्याह से लेकर जनाज़ों तक हर मौके पर पकाया जाता है. यानी यह स्वाद सिर्फ ज़ायका नहीं, बल्कि दुख-सुख दोनों में शरीक होने वाली तहज़ीब का हिस्सा है.


कई साल से परोस रहे शाही जायके
अहमद नकवी बताते हैं कि उनके दादा नवाबी दौर में खुद खानसामे रहे हैं. उनका खानदान कई साल से इन शाही दावतों में नवाबी ज़ायके पेश करता आ रहा है. नकवी बताते हैं कि उनके दादा दो भाई थे—अहमद नकवी और गुलाम नकवी—जो नवाब साहब के यहां खाना बनाने वाले मशहूर बावर्ची माने जाते थे. अहमद नकवी अब तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं और आज भी उसी शाही अंदाज़ में दावतें परोसते हैं.

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